कृतज्ञता समृद्धि लाती है, और शिकायत गरीबी।
कृतज्ञ होना/शुक्रगुजार होना एक सर्वोत्तम भाव है। यह एक ऐसी आदत है, जिसको अपनाने मात्र से हमारा सम्पूर्ण जीवन रूपांतरित हो जाता है।
कृतज्ञता का ज़िक्र बहुत ही खूबसूरती से रॉन्डा बर्न ने अपनी पुस्तक जादू में किया है, जिसमे वर्णित एक वाक्य समूह ही बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है: “जिसके भी पास कृतज्ञता है, उसे अधिक दिया जाएगा और वह समृद्ध होगा। जिसके पास कृतज्ञता नही है, उसके पास जो है वह सब भी उससे ले लिए जाएगा।” जब आप इन वाक्यों को पढ़ते वक्त आपको अन्यायपूर्ण लग सकता है, लेकिन यह सच है, ईश्वर ने जो कुछ भी हमे दिया है, यदि हम उन सबके प्रति कृतज्ञ/शुक्रगुजार है, तो हमे और अधिक मिलेगा और यदि हम उन सबके प्रति कृतज्ञ/शुक्रगुजार नही है और जो भी चीज हमारे पास नही है, उसके प्रति हमेशा शिकायत कर रहे है, तो हमारे पास जो कुछ पहले से ही है, उसे भी खो देंगे।
यह एक तरह से ऐसा कहने जैसा है कि अमीर लोग ज्यादा अमीर बनेंगे और गरीब लोग ज्यादा गरीब। जब ये शब्द लिखे गए थे, तब से दो हजार साल का समय बीत चुका है, लेकिन ये आज भी उतने ही सच है, जितने की ये तब थे। जी हाँ दुर्भाग्य से यदि आप कृतज्ञ/शुक्रगुजार होने समय नही निकाल पाते है, तो आपको कभी भी और अधिक नही मिलेगा और आपके पास जो है, उसे भी खो देंगे। यदि आप कृतज्ञ है, तो आपको और अधिक दिया जाएगा और आप समृद्ध होंगे। हमारे धर्मग्रंथों में भी कृतज्ञता पर अधिक प्रबलता से दावा किया गया है: भगवान श्रीकृष्ण ने कृतज्ञता को इस प्रकार कहा था: उन्हें जो भी दिया जाता है, वे उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते है।
कुरान में भी कृतज्ञता का दावा इतनी ही प्रबलता से किया गया है: यदि तुम कृतज्ञ हो, तो मैं तुम्हे ज्यादा दूँगा, लेकिन यदि तुम कृतघ्न/शिकायत करते हो, तो मेरा दण्ड सचमुच गंभीर होगा। मुहम्मद साहब ने कहा था कि आपको जो विपुल समृद्धि मिली है, उसके लिए कृतज्ञता सबसे अच्छी गारन्टी है कि यह समृद्धि जारी रहेगी। इससे कोई कोई फर्क नही पड़ता कि आप किस धर्म के अनुयायी है या आप धार्मिक हैं भी या नही।
दरसअल यह ये विज्ञान और सृष्टि के एक मूलभूत नियम को बता रहे है। समान ही समान को आकर्षित करता है। आकर्षण का नियम ही है जिसकी बदौलत प्रत्येक भौतिक वस्तु का रूप कायम है। हमारे जीवन मे यह नियम हमारे विचारों और भावनाओं पर कार्य करता है। हैम जैसा भी सोचते है, जैसा भी महसूस करते है, वैसा ही अपनी ओर आकर्षित करते है। यदि हम सोचते है कि मैं अपनी नौकरी को पसन्द नही करता, मेरे पास पर्याप्त धन नही है, मैं अपने बिल को नही चुका सकता, या फिर मुझे आदर्श जीवनसाथी नही मिल सकता, मेरा वैवाहिक जीवन संकट में है, मेरा जीवन अस्तव्यस्त हो गया है, तो आप अपनी ओर ऐसे ही अधिक अनुभवों को आकर्षित करेंगे। लेकिन यदि आप उन चीजों के बारे में सोचते और महसूस करते है, जिनके लिए आप कृतज्ञ/शुक्रगुजार है, जैसे मैं अपनी नौकरी को पसंद करता हु और प्रेम करता हूँ, मेरा परिवार बहुत ही मददगार है, मेरा लोगों से सम्बन्ध अच्छा है, और आप सचमुच कृतज्ञता महसूस करते है, तो आकर्षण का नियम कहता है कि आपको जीवन मे ऐसी ही अधिक चीजें मिलेंगी। यह उसी प्रकार कार्य करता है , जिस तरह धातु चुम्बक की ओर खिंचती है। कृतज्ञता चुम्बकीय है, और आपके पास जितनी अधिक कृतज्ञता होती है, आप चुम्बक की तरह उतनी ही अधिक समृद्धि को आकर्षित करते है।
आपने इस तरह की कहावतें सुनी होगी कि जो भी जाता है, लौटकर वापस आता है, आप जो बोते है, वही काटते है, और आप जो देते है, वही पाते है। ये सारी कहावते उसी नियम का वर्णन कर रही है। ये सृष्टि के सिद्धांत का वर्णन कर रही है, जिसे महान वैज्ञानिक न्यूटन ने खोजा था। हर क्रिया की हमेशा विपरीत और समान प्रतिक्रिया होती है। जब कृतज्ञता के नियम को न्यूटन के इसी नियम पर लागू करते है, तो यह इस प्रकार कार्य करता है: शुक्रगुजार होने/धन्यवाद देने की हर क्रिया हमेशा पाने की विपरीत प्रतिक्रिया उतपन्न करती है, यानी कि आप पाते है। और जो आप पाते है, वह हमेशा आपके द्वारा दी गयी कृतज्ञता की मात्रक समान होगा। आप जितनी ईमानदारी और गहराई से कृतज्ञता महसूस करते है/ जितनी अधिक कृतज्ञता व्यक्त करते है, आप उतना ही और अधिक पाएँगे और आपका जीवन और बेहतर और खुशहाल होगा।
धन्यवाद, धन्यवाद, धन्यवाद।
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